अजित गुप्ता जी का आलेख पढ़ा....रिश्तों में एक खुशबू होती है...उसे पढने के पहले ही मेरे मनमे सवाल था....मेरे घरके रिश्तों को किसकी नज़र लगी हुई है? जब पारिवारिक रिश्तों को देखती हूँ तो अपने आप को हरा हुआ महसूस करती हूँ. मेरे ब्याह के बाद आजतक रिश्तों को संजोये रखने में मेरी उम्र बीत गयी लेकिन घरमे शांती नसीब नहीं हुई. असर ये हो गया है की बिलकुल खामोश हो गयी हूँ...गुमसुम.
पिछले पंद्रह दिन पूर्व हुए एक वाकये से मुझे लिखने का मन किया. बहुत सोचा....लिखूं या न लिखूं? जब मुझे बेटी हुई तब मेरे ससुराल वाले नाराज़ हुए क्योंकि उन्हें बेटा चाहिए था. मुझे हर समय अपनी बेटी को लेके चिंता लगी रहती. उसकी ज़रूरतें छुप के पूरी करती रही. बाप बेटी में हरदम तनाव रहता. शादी होने तक तो बेटी बाप से ज़बान नहीं लड़ाती थी लेकिन शादी के बाद उसका मिज़ाज बहुत गुस्सैल हो गया. अब जब कभी आती है तो मुझे बेहद तनाव महसूस होता है. और उस दिन तो हद हो गयी....वो अपने काम से भारत आयी हुई थी/है...बाप बेटी में ऐसा झगडा हुआ की बाप ने बिटिया को घरसे निकल जाने को कह दिया...मुझे कुछ ही दिन पहले दिलका दौरा पडा था....उन दोनोका झगडा सुन मेरा दिल दहल गया! उस झगडे को किसी तरह निबटाया तो चार रोज़ पहले भाई बहन में ऐसा झगडा हुआ की मेरे बेटे ने गुस्से में आके बहन का सामान घरके बहार फेंकना शुरू कर दिया!बिटिया ने भी अपने भाई को कटु अलफ़ाज़ कहने में कोई कमी नहीं छोडी थी. वैसे ताउम्र कोशिश करने के बावजूद दोनों में आपसी प्यार नहीं था....लेकिन इस हदतक बिटिया के मन में ज़हर होगा मुझे कल्पना नहीं थी. बिटिया ने फोन करके अपने पति को हमारे घर आने से मना कर दिया.
अपने पति तथा सास का गुस्सैल मिज़ाज तो सारी उम्र बर्दाश्त करती रही....सिरदर्द और डिप्रेशन शिकार तो बरसों से हूँ....अब तो मेरे मनमे हर समय आत्महत्या करने का विचार रहने लगा है....जानती हूँ,आप सब कहेंगे ये कायरता है,लेकिन बर्दाश्त की भी एक हद होती है....दिलके दौरे के कारन डिप्रेशन की दवाई भी नहीं ले सकती....नाही सर दर्द की..ज़िंदगी में बिटिया ने मेरा साथ भी बहुत निभाया है,लेकिन मेरे साथ भी बहुत बदतमीज़ हो गयी है....उसके आगे भी खामोश रहती हूँ.....आप सभी से पूछती हूँ,इस दौर से बाहर निकलूं तो कैसे? रिश्ते निभाऊं कैसे?
पिछले पंद्रह दिन पूर्व हुए एक वाकये से मुझे लिखने का मन किया. बहुत सोचा....लिखूं या न लिखूं? जब मुझे बेटी हुई तब मेरे ससुराल वाले नाराज़ हुए क्योंकि उन्हें बेटा चाहिए था. मुझे हर समय अपनी बेटी को लेके चिंता लगी रहती. उसकी ज़रूरतें छुप के पूरी करती रही. बाप बेटी में हरदम तनाव रहता. शादी होने तक तो बेटी बाप से ज़बान नहीं लड़ाती थी लेकिन शादी के बाद उसका मिज़ाज बहुत गुस्सैल हो गया. अब जब कभी आती है तो मुझे बेहद तनाव महसूस होता है. और उस दिन तो हद हो गयी....वो अपने काम से भारत आयी हुई थी/है...बाप बेटी में ऐसा झगडा हुआ की बाप ने बिटिया को घरसे निकल जाने को कह दिया...मुझे कुछ ही दिन पहले दिलका दौरा पडा था....उन दोनोका झगडा सुन मेरा दिल दहल गया! उस झगडे को किसी तरह निबटाया तो चार रोज़ पहले भाई बहन में ऐसा झगडा हुआ की मेरे बेटे ने गुस्से में आके बहन का सामान घरके बहार फेंकना शुरू कर दिया!बिटिया ने भी अपने भाई को कटु अलफ़ाज़ कहने में कोई कमी नहीं छोडी थी. वैसे ताउम्र कोशिश करने के बावजूद दोनों में आपसी प्यार नहीं था....लेकिन इस हदतक बिटिया के मन में ज़हर होगा मुझे कल्पना नहीं थी. बिटिया ने फोन करके अपने पति को हमारे घर आने से मना कर दिया.
अपने पति तथा सास का गुस्सैल मिज़ाज तो सारी उम्र बर्दाश्त करती रही....सिरदर्द और डिप्रेशन शिकार तो बरसों से हूँ....अब तो मेरे मनमे हर समय आत्महत्या करने का विचार रहने लगा है....जानती हूँ,आप सब कहेंगे ये कायरता है,लेकिन बर्दाश्त की भी एक हद होती है....दिलके दौरे के कारन डिप्रेशन की दवाई भी नहीं ले सकती....नाही सर दर्द की..ज़िंदगी में बिटिया ने मेरा साथ भी बहुत निभाया है,लेकिन मेरे साथ भी बहुत बदतमीज़ हो गयी है....उसके आगे भी खामोश रहती हूँ.....आप सभी से पूछती हूँ,इस दौर से बाहर निकलूं तो कैसे? रिश्ते निभाऊं कैसे?